Thursday, February 16, 2012

सोंच या सच ?

आज तो जंग छिड़ी थी,
 और जंग भी तोह ऐसी की
 ना कोई दुश्मन था, ना कोई साथी,
ना कोई सीमाए थी, ना कोई लकीरे,
पर जंग तो छिड़ी थी 
आग तो लगी थी 
पर ना कोई धुआ था, ना कुछ जल रहा था
पर वोह जलने वाली खुशबु , आज तक दिल में ताजा हें!
वोह रात थी या दिन था,
ना कोई जान पाया था, ना कोई जान पाएगा !
तीन कौने थे सिर्फ,
जो ना खली थे, ना भरने वाले थे!
सब कोई परेशान सा था, एक हलचल सी मची हुई थी,
ख़ुशी भी तो ऐसी थी, जो आंसुओ सी सहमी थी!
वोह कागज़ भी सिकुड़ कर सारी कहानी बयां कर गया,
हमने आज एक जंग छेदी थी, खयालों में उल्जा गई, बहुत कुछ कहे गई!
एक अध्रयाश्य सा महा मंथन था यह, 
हमने ही महसूस किया,
पर हम भी ना बयां कर पायें!!  

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